Gau Maata
पिछले काफी दिनों से गाय पर लिखने की सोच रहा था।गाय के बारे में मेरे अधिकांश विचार इस पोस्ट में हैं।जो नहीं हैं, उनको प्रश्नों के उत्तर के रूप में आवश्यक्ता पड़ने पर कमेंट-बॉक्स में दुँगा।ये पोस्ट प्रशांत बाजपेई की है, और एडिटेड है, जिनका ओरिजिनल लिंक कमेंट बॉक्स में है।आप चाहें तो वहाँ जाकर पूरा पढ़ सकते हैं-
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“दूसरे की धार्मिक भावनाओं का आदर करना भारत के संविधान की मूलभूत बातों में से एक है।”
15 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने गौ हत्या और गौ मांस के सभी उत्पादों की बिक्री, आयात और निर्यात पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने की बात कहते हुए हुए ये शब्द कहे।
न्यायालय ने आगे कहा कि संविधान की धारा 48 , 48ए और 51-ए (जी) को ध्यान में रखते हुए सारे देश में गाय/ बैल/ बछड़े की हत्या पर रोक लगाने के लिए क़ानून बनना चाहिए।
कोर्ट ने ये आदेश भारतीय गोवंश रक्षण संवर्धन परिषद द्वारा दायर की गयी याचिका का निर्णय करते हुए दिया।
क्या हिंदुओं की आस्था इस देश के अल्पसंख्यकों के लिए कोई महत्व नहीं रखती।
गौ रक्षा का प्रश्न महात्मा गांधी और विनोबा भावे के लिए विशुद्ध राष्ट्रहित का मुद्दा था।गांधी कहते थे कि उनके लिए गौरक्षा स्वराज प्राप्ति से भी बड़ा प्रश्न है।
सलमान रश्दी की किताब ‘शैतानी आयतें’ को प्रतिबंधित करने की फुर्ती के मामले में भारत ने इस्लामी मुल्कों को भी पीछे छोड़ दिया था। तब किसी लेखक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी किसी को चिंता नहीं हुई थी। कहा गया कि ये मुस्लिमों की भावनाओं का प्रश्न है।
जब सारी रात संसद में बहस करवा के, क़ानून बनाकर एक बूढ़ी महिला शाहबानो के साथ अन्याय किया गया तो उसे अल्पसंख्यकों का मज़हबी मामला कहा गया।
लेकिन जब कभी गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग उठती है, तब भारत के सौ करोड़ हिन्दू समाज की भावनाओं का कोई संज्ञान नहीं लिया जाता। वेदों को भी तोड़-मरोड़ के गौहत्या के सन्दर्भ निकाले जा रहे हैं, जबकि वेदों में कहीं पर भी गौहत्या अथवा गौमांस को स्वीकृति नहीं दे गयी है, बल्कि स्पष्ट निषेध किया गया है।क्या ये तथाकथित बुद्धिजीवी कुरआन या बाइबिल की भी ऐसी ही मनमानी व्याख्याएं करने का साहस कर सकते है?
इसके अलावा गाय के खून का एक अर्थशास्त्र भी प्रस्तुत किया जा रहा है,
संक्षेप में उसका सार ये है कि बीफ (भैंस और गाय का मांस) से भारत के कुछ व्यापारियों को प्रतिवर्ष 29,000 करोड़ रूपए प्राप्त हो रहे हैं। इसके अलावा सींग और खुर से आभूषण, कान के झुमके, गले का हार, कोट का बटन, कंघी बनाने का सामान आदि बनाने का काम होता है। चर्बी से चिप्स और नमकीन बिस्किट को कुरकुरा बनाया जाता है। ग्रंथि से इन्सुलिन, ट्रिप्टेन, हेपेरिन और खून से आयरन टॉनिक वगैरह बनते हैं। आँतों का प्रयोग सर्जरी की सिलाई में होता है। हड्डियों से जिलेटिन मिलता है। आइये जरा सत्य को देखें जो मीडिया छिपाता है।
शुरुआत गाय के दूध से की जाए। भारत में हज़ारों सालों से प्रचलित है कि गाय का दूध अमृत होता है। गौरतलब है कि प्राचीन भारत में, यहाँ तक कि आज से कुछ दशक पहले तक गाय का मतलब देसी गाय होता था, जर्सी गाय नहीं।
आज विज्ञान ने हमारे पुरखों की इस सोच पर स्वीकृति की मुहर लगा दी है। नए शोध के अनुसार सारी दुनिया की गाय के दूध में दो प्रकार का प्रोटीन पाया जाता है, ए1 और ए2। ए1 प्रोटीन ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, एलर्जी और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां पैदा करता है।जबकि ए2 प्रोटीन इन सारी बीमारियों से रक्षा करता है। हम भारत वासियों के सौभाग्य से देसी गायों की सभी नस्लों में ए2 प्रोटीन पाया जाता है, जबकि जर्सी गाय के दूध में ए1 पाया जाता है। भारत में भी इस पर अलग से शोध हुआ है।
त्रिशूर के कॉलेज ऑफ़ वेटेनरी एंड एनिमल साइंस के ई.एम. मुहम्मद ने डॉ. स्टीफन मैथ्यू (पशु प्रजनन, अनुवांशिकी और बायो स्टेटिस्टिक्स के प्राध्यापक) के मार्गदर्शन में शोध किया और भारतीय गाय के दूध की उपरोक्त गुणवत्ता की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि भारत की देसी गाय के दूध में पाया जाने वाला ए2 प्रोटीन मधुमेह और हृदयरोग के अलावा एथिरोस्क्लेरोसिस, आटिज्म और शिशुओं की अकाल मृत्यु से रक्षा करता है। भारतीयों में कुपोषण को लेकर कलम घिसने वाले बुद्धिजीवियों को ई.एम. मुहम्मद के इस शोध पर ध्यान देना चाहिए।
शोध ये भी बताता है कि भारत में प्रचलित हो रहा जर्सी, होल्स्टीन फ्रीजियन और ब्राउन स्विस का दूध ए 1 प्रोटीन के कारण स्वास्थ के लिए हानिकारक है।
दुनिया पहले ही इस बात को समझ चुकी है। न्यूज़ीलैंड संसद में इस पर व्यापक चर्चा हो चुकी है। ब्रिटेन और आयरलैंड में भारतीय नस्ल की गाय के दूध की मांग बढ़ गयी है। ‘ए2 मिल्क’ के नाम से बाजार में आते ही सालभर में इसकी खपत 10 लाख पौंड तक पहुँच गयी। 2013 में ही ब्रिटेन के 1000 बड़े स्टोर ‘ए2 मिल्क’ बेच रहे थे। ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में इसकी खपत 57% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है।भारत इस ओर से बेसुध है। तिसपर विडम्बना ये कि दुनिया में बढ़ती भारतीय गायों की मांग की पूर्ति भारत नहीं ब्राज़ील कर रहा है।
नव-स्वतंत्र भारत में जब प्लानिंग कमीशन भारत के पशुधन को काटकर विदेशी मुद्रा कमाने की योजना बना रहा था, तब ब्राज़ील ने भारत से गाय की तीन नस्लों – गिर, कांकरेज और ओंगलो का आयात किया था। आज ब्राज़ील में ये भारतीय गाय प्रतिदिन 30 से 40 लीटर दूध दे रही है, और ब्राज़ील भारतीय गायों की शुद्ध नस्ल को बेच कर धन कमा रहा है। ब्राज़ील के मिनास प्रान्त में ईपीएएमआईजी नामक कंपनी ने भारतीय नस्ल की ऐसी ही 50 गायों को ले कर 307 दिनों तक प्रतिदिन 10,000 लीटर दूध उत्पादन का कीर्तिमान स्थापित किया है। दूध की बढ़ती कीमतों पर चिंता जताने वाले इन तथ्यों पर कब ध्यान देंगे? उचित रख-रखाव के साथ क्या ये गाय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आर्थिक ताकत में नहीं बदल सकतीं? हमारी गायें सर्वश्रेष्ठ हैं। वो तो बस कुपोषण का शिकार हैं।
अब हमारे गोधन के अन्य आर्थिक पक्षों पर भी चर्चा करते हैं। भारत प्रतिवर्ष डीज़ल-पेट्रोल, विदेशी बीज, रासायनिक खाद एवं कीटनाशक के आयात पर लाखों करोड़ रूपए खर्च कर रहा है। ज़रा सोचिये, भारत में 19 करोड़ गाय हैं। यदि एक गाय प्रतिदिन औसत 10 किलो गोबर देती है तो 19 करोड़ गायों के गोबर से बनायी जा सकने वाली गोबर गैस से भारत की ऊर्जा समस्या हल हो सकती है अथवा नहीं ? गोबर गैस बनने के बाद प्रतिदिन मिलने वाला खाद किसानों को बाँट दिया जाए तो किसानों की दुर्दशा पर लम्बे-लम्बे लेख और रपट लिखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। न ही कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्या पर टीवी चैनलों का ‘कीमती समय’बर्बाद करना पड़ेगा।
किसान आत्महत्या कर रहा है क्योंकि रासायनिक खेती साल दर साल मँहगी होती जा रही है। भारत में अनेक संस्थान हैं जो गाय से मिलने वाली अनेक प्रकार की खाद, गोमूत्र से बने कीटनाशक और परिष्कृत देसी बीजों के आधार पर चमत्कार कर के दिखला रहे हैं। गौ आधारित खेती के इस प्रकार से हज़ारों किसानों ने उच्च गुणवत्ता की जैविक फसल प्राप्त कर के मोटा धन कमाया है। दोगुने आकार के गेँहू के दाने और 20 फुट ऊँचे गन्ने की फसल से खेत और घर दोनों लहरा रहे हैं। छोटे किसानो की कमाई 6 से 7 गुना बढ़ी है। कुछ हजार की लागत से बनने वाले बैल ट्रैक्टर लाखों के डीज़ल ट्रैक्टर की तुलना में किसानो के लिए ज्यादा लाभप्रद साबित हो रहे हैं। सेंद्रिय खाद (जैविक खाद) रासायनिक खाद की तुलना में 20 प्रतिशत पानी में ही फसल देती है।
गौ आधारित खेती का स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़ा पहलू भी है। आज भारत में कीटनाशक और रासायनिक खाद के जहर से सारे देश में कैंसर के रोगी बढ़ रहे हैं।अनुवांशिक बीमारियां पैदा हो रही हैं। माँ के दूध और गर्भस्थ शिशु के रक्त में जहरीले कीटनाशक पहुंच चुके हैं।
गौ आधारित जैविक कृषि भारत को मँहगे स्वास्थय बजट से मुक्ति दिला सकती है। पर्यावरण के नाश को भी रोका जा सकता है। रासायनिक कीटनाशकों के कारण तितलियाँ, कीट-पतंगे और पक्षी नष्ट हो रहे हैं। पक्षियों की प्रजनन क्षमता बाधित हो रही है (मनुष्यों की भी)।भूमिगत जल और मिट्टी जहरीली हो रही है। हमारे पास समाधान है, लेकिन हम उसे काट कर बेच रहे हैं।
अब बात अन्य जरूरी ‘उपयोगों’ की। अनेक राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में झूठ परोसा जा रहा है। जैसे कि, गाय को मारना जरूरी है क्योंकि गाय की ग्रंथियों से इन्सुलिन, ट्रिप्टेन, हेपेरिन और पेप्सिन बनाया जाता है। ये भ्रामक प्रचार है। आज से 3-4 दशक पूर्व इस प्रकार से दवाओं का उत्पादन होता था। अनुवांशिक अभियांत्रिकी (जेनेटिक इंजीनियरिंग) ने सारे परिदृश्य को बदल दिया है। अब उत्पादन सूक्ष्म कोशिकाओं की मदद से किया जाता है। उससे ज्यादा बेहतर इन्सुलिन प्राप्त हो रहा है। वैसे भी भारत में इन्सुलिन कभी नहीं बनाया गया। क्योंकि इसका पेटेंट एक विदेशी कंपनी के पास है।
दूसरा भ्रामक प्रचार गाय के खून से बनने वाले हीमोग्लोबिन और आयरन टॉनिक की बारे में है। इन सब के बेहतरीन विकल्प आज मौजूद हैं। ज्यादातर उत्पादन बिना किसी रक्त के उपयोग होता है।
तीसरा असत्य, गाय की आँतों से शल्य चिकित्सा के बाद की सिलाई किया जाना, हास्यास्पद है। ये स्टेपल और नायलॉन के टांकों का ज़माना है। आज बिल्ली, गाय अथवा घोड़े की आँतों से शल्य चिकित्सा नहीं की जाती। कृत्रिम रेशों ने शल्य चिकित्सा की दुनिया को पूरी तरह बदल दिया है।
रही बात जिलेटिन की, तो अपनी स्वाभाविक मौत मरने वाले पशुओं से ही जिलेटिन की खपत पूरी हो सकती है। उसके लिए किसी भी जीव की हत्या करने की आवश्यकता नहीं है।
बचे ‘सींग और खुर से बनने वाले कंघी, बटन, आभूषण।’ इसके बारे में कहना ही क्या? भारतीय महिलाओं का स्वर्ण-प्रेम जगत प्रसिद्ध है। कितनी महिलाएं ‘सींग और खुर’ के आभूषण पहनती हैं? हाथी दांत के व्यापारी भी कभी ऐसे ही तर्क दिया करते थे।
और जहाँ तक चर्बी से चिप्स और नमकीन बिस्किट को कुरकुरा बनाने का मामला है तो ये वैसे ही भारतीय उपभोक्ताओं के मध्य सवाल बनता जा रहा है कि शाकाहारी चिप्स के नाम पर उनकी प्लेट में गाय या सुअर की चर्बी में तले भुने उत्पाद कैसे परोसे जा सकते हैं ?
आयुर्वेद में गाय से प्राप्त अनेक दवाओं का वर्णन है जिनका आज सफल प्रयोग पुनः प्रारम्भ है। गोमूत्र अर्क को 5 अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट प्राप्त हो चुके हैं।
ये सारी बातें चर्चा से गायब हैं। क्या गाय के ये उपरोक्त लाभ केवल हिन्दुओं के लिए हैं ?
यदि उच्च न्यायालय ये कहता है कि गौहत्या को रोकने के लिए कठोर क़ानून बनाया जाए तो क्या उसका अर्थ ये नहीं होता कि इस कानून द्वारा किसी भी नागरिक को गौहत्या करने और गोमांस का भक्षण करने से रोका जाएगा ?
गाँधी के नाम की दुहाई देकर गौहत्या की पैरवी करना खुद महात्मा गांधी के साथ कितना बड़ा छल है, लेकिन ये रोज-रोज हो रहा है। गांधी वांग्मय का अध्ययन करें। गाँधी किसी की भी ह्त्या के खिलाफ थे, लेकिन उन्हें गौहत्या भी किसी कीमत पर स्वीकार नहीं थी।
ये पाखंड कब ख़त्म होगा ?
Gau Maata